छत्रपति महाराज शिवाजी का इतिहास

शिवाजी महाराज, जिन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज भी कहा जाता था, जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था और 3 अप्रैल 1680 को मर गया था। वह भारत के सर्वश्रेष्ठ राजाओं में से एक थे। उनका बचपन से ही स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का सपना था। उन्होंने बहुत छोटी आयु से ही युद्धक क्षमता हासिल की थी।

जन्म से ही वे बहुत बुद्धिमान थे और शत्रु को चकमा देकर गुप्त रहस्यों से मार डालते थे। इस रणनीति को गुरिल्ला युद्ध नीति भी कहा जाता है। तो आइए शिवाजी महाराज का पूरा इतिहास जानते हैं।

शिवाजी महाराज का जन्म और बचपन

20 अप्रैल, 1627 को पुणे, महाराष्ट्र में शिवनेर के पहाड़ी किले में छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। उनके पिता शाहजी भोंसले थे, जो आदिल शाह के दरबार में काम करते थे, और उनकी माता जीजाबाई पुणे में रहती थी। इसलिए शिवाजी अपने पिता से दूर रहे और अपनी माता जीजाबाई के साथ रहे। दादा कोंडदेव ने उनकी बचपन की देखभाल की। शिवाजी को उनकी माता जीजाबाई और संरक्षक कोंडदेव ने महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का पूरा ज्ञान दिया, साथ ही युद्ध नीति भी सिखाई।

शिवाजी पुणे जिले के जुन्नार गाँव के शिवनेरी किले में पैदा हुए थे। उनकी माता ने शिवाजी का नाम भगवान शिवाई पर रखा था, जिन्हें वह बहुत मानती थी। शिवाजी के पिता उस समय डेक्कन के सुल्तान के अधीन बीजापुर के जनरल थे। शिवाजी अपनी माँ से बहुत करीब थे और उनकी माता बहुत धार्मिक थी, जिसका प्रभाव शिवाजी पर भी पड़ा। उन्होंने रामायण और महाभारत को बहुत सावधानी से पढ़ा था और बहुत कुछ सीखा था, जो उन्होंने अपने जीवन में लागू किया था। शिवाजी ने हिंदुत्व को बहुत समझा था और अपने जीवन भर में हिंदुओं के लिए बहुत कुछ किया। पिता शिवाजी ने दूसरी शादी करके कर्नाटक चले गए और अपने बेटे शिवाजी और पत्नी जिजाबाई को किले की देख रेख करने वाले दादोजी कोंडदेव के पास छोड़ दिया।

शिवाजी का राज्याभिषेक

छत्रपति शिवाजी ने 1674 में खुद को मराठा साम्रज्य का स्वतंत्र शासित घोषित किया। रायगढ़ के किले में उनको राजा का ताज पहनाया गया। यह राज्यभेषिक सुल्तान के लिए एक चुनौती बन गया।

पुरंदर की संधि

औरंगजेब ने फिर से शिवाजी के खिलाफ अम्बर के राजा जय सिंह और दिलीर सिंह को खड़ा किया। जयसिंह ने उन सभी किलों को जीता और शिवाजी को हराया। हार के बाद शिवाजी को मुगलों के साथ सौदा करना पड़ा।

शिवाजी महाराज का बीजापुर का सुल्तान मोहम्मद आदिलशाह पर आक्रमण

बीजापुर का सुल्तान मोहम्मद आदिलशाह उस समय शिवाजी महाराज पर हमला करता था। वह एक अन्यायपूर्ण और क्रूर शासक था जिसने अपने देश में अन्याय फैला रखा था। शिवाजी को सैनिकों और राजकुमारों की क्रूरता पसंद नहीं आई।  शिवाजी एक बार अपने पिता के साथ बीजापुर गए थे। वह वहां बाजार में एक कसाई को पीटते हुए उसे बूचड़खाने में काटने के लिए ले जाते देखा। शिवाजी ने कभी ऐसा दुखी दृश्य नहीं देखा था। गाय को मुक्त करने के लिए उन्होंने रस्सी को अपनी तलवार से काट लिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना

छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना बहुत बड़ी थी और अपनी सेना को एक पिता की तरह देखते थे। शिवाजी ने सक्षम लोगों को ही अपनी सेना में शामिल किया, जिनके पास इतनी समझ थी कि वे एक बड़ी सेना को अच्छे से चला सकते थे। वे पूरी सेना को बहुत अच्छे से प्रशिक्षित करते थे, शिवाजी के एक संकेत से वे सब कुछ समझ गए। उस समय अलग-अलग टैक्स वसूले जाते थे, लेकिन शिवाजी एक दयालु राजा थे और किसी से टैक्स नहीं लेते थे। वे बच्चों, ब्राह्मणों और औरतों के लिए बहुत कुछ करते थे। बहुत सी परम्पराओं को समाप्त कर दिया। जब मुगलों ने हिंदुओं पर बहुत अत्याचार किया और उनसे इस्लाम धर्म अपनाने को कहा, तो शिवाजी मसीहा बनकर आए। शिवाजी ने एक मजबूत नेवी बनाई, जो समुद्र में भी तैनात रहती थी और दुश्मनों से बचती थी। उस समय शिवाजी के किलों में मुगलों और अंग्रेजों की बुरी निगाह थी, इसलिए उन्हें इंडियन नेवी का पिता कहा जाता था।

गुहिलोत यात्रा और स्वराज्य की शपथ

छत्रपति महाराज शिवाजी ने अपने स्वराज्य को तैयार करने में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। मुघल साम्राज्य के खिलाफ लड़ना ही उनकी यात्रा का उद्देश्य था। 16 वर्षीय शिवाजी ने 1645 में मुघल सेनापति अफजल खान के साथ तोरणा कस्तील में रहकर सैन्य और राजनीतिक शिक्षा प्राप्त की। इस बैठक में शिवाजी ने स्वराज्य बनाने की इच्छा व्यक्त की और मुघल साम्राज्य के खिलाफ लड़ने की कसम खाई। शिवाजी ने स्वराज्य की दिशा में पहला कदम उठाया जब उन्होंने गुहिलोत की यात्रा की, जो उनकी साहस और दृढ़ता को दिखाती थी।

स्वराज्य की लड़ाई और तानसेन

छत्रपति शिवाजी महाराज की स्वराज्य की लड़ाई और तानसेन नामक संगठन उनके विकास के दो महत्वपूर्ण घटनाओं में से दो हैं।

छत्रपति शिवाजी की वीरता और पराक्रम ने तोरणा कस्तील में स्वराज्य की लड़ाई शुरू की। 1659 में, तानसेन के साथ मिलकर उन्होंने प्रतापगड़ के युद्ध में मुघल सेना को हराया और रायगढ़ किले को फिर से बनाकर एक बड़ी जीत हासिल की। यह युद्ध उनकी स्वतंत्रता की भावना को मजबूत करने और उनके सैनिकों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण था।

एक गुप्त संगठन था जिसका लक्ष्य मुघल साम्राज्य के खिलाफ लड़ना था। तानसेन का महत्वपूर्ण स्थान छत्रपति शिवाजी ने बनाया था। तानसेन के सदस्यों को गुप्त रूप से एकजुट करके युद्ध की तैयारी की गई। उन्होंने इस संगठन के तहत मुघल साम्राज्य के बहादुर निजामशाही सेनापति अफजल खान को मार डाला और अपनी स्वतंत्रता को बचाया।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की लड़ाई में साहस, बल और नेतृत्व का प्रदर्शन किया। तानसेन ने मुघल साम्राज्य के खिलाफ उनके संघर्ष और स्वराज्य लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आमेर की घटना

शिवाजी ने जेल में बीमार होने का नाटक किया, जिससे उनके लिए हमेशा फल आने लगे। द्वारपाल पहले फलों की टोकरी को बार-बार देखते थे, लेकिन बाद में वे लापरवाह हो गए।  इसका लाभ उठाकर शिवाजी ने उन टोकरियों में बैठकर अपने पुत्र संभाजी के साथ वहां से निकल गए। शिवाजी का स्वास्थ्य इतने दिनों तक जेल में बिगड़ गया था। वह पुणे वापस आ गए।  पुणे में जसवंत सिंह को नया सूबेदार नियुक्त किया गया। जसवंत सिंह शिवाजी के प्रति भावुक था। शिवाजी का स्वास्थ्य खराब हो गया था और वे युद्ध विराम चाहते थे।  1667 में मराठों और मुगलों ने एक समझौता किया। इस समझौते का मध्यस्थ जसवंत सिंह ने किया था।  औरंगजेब ने शिवाजी को एक स्वतंत्र राजा माना और उन्हें “राजा” का दर्जा दिया। किंतु औरंगजेब शिवाजी के खिलाफ कभी नहीं रुका।  संधि के बाद भी उसने शिवाजी के खिलाफ हमेशा कुछ तैयार रखा। इसलिए शिवाजी ने वापस संधि के नियमों को तोड़ते हुए अपने खोए हुए सभी किलों पर अधिकार कर लिया।

अफजल खान तथा शिवाजी का इतिहास

इसके बाद एक सेनापति अफजल खान ने शिवाजी के खिलाफ जाना चाहा। उसने घोड़े से नीचे उतरे बिना शिवाजी को कैद करके ले आएगा।  जब वह जानता था कि शिवाजी के साथ अकेले युद्ध करके जीत नहीं मिलेगी, तो अफजल खान ने अपने एक सैनिक को शिवाजी से मिलने के लिए भेजा। और कहा गया कि शिवाजी और अफजल खान एक-दूसरे से मिलेंगे और सौदा करेंगे। शिवाजी को अफजल खान की इस चालाकी का पता चला। अपनी सुरक्षा के लिए उन्होंने लोहे का कवच बनाया। उन्होंने निर्धारित दिन पर अफजल खान से मुलाकात की। शिवाजी अफजल खान से बहुत लंबा-चौड़ा था। शिवाजी ने दाएं हाथ में बिछवा नाम की तेज कटारी रखी थी और बाएं हाथ में बघनखे। अफजल खान ने उन्हें कटार से मारने की कोशिश की जब वह उनके गले लग गया। तो शिवाजी ने अफजल खान के पेट में अपने बघनखे से घुसाकर उसकी किडनी निकाल दी और उसे मार डाला। अफजल खान के सैनिकों ने यह खबर सुनते ही विद्रोह कर दिया। शिवाजी के सैनिक पहाड़ियों में छिपे हुए थे, जिससे अफजल खान के सैनिक भाग गए।

औरंगजेब ने किया शिवाजी का अपमान

औरंगजेब ने शिवाजी को मई 1666 में अपमानित किया। उन्हें वहाँ मनसबदारों की लाइन में खड़ा किया गया था। मनसबदार जसवंत सिंह उनके सामने खड़ा था। शिवाजी के सैनिकों ने जसवंत सिंह को युद्ध में भगा दिया था।  शिवाजी ने कहा कि मेरे सैनिक जसवंत सिंह की पीठ देखते थे। उसके पीछे खड़ा होना मुझे दुखी करता है। मुगल दरबार में सम्मान नहीं मिलने पर शिवाजी ने दरबार छोड़कर मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के यहां आ गए। शिवाजी को जयपुर भवन में औरंगजेब ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मार डालने का फैसला किया।  इस कठिन समय में भी शिवाजी ने धैर्य नहीं खोया और नए उपायों की खोज करने लगे ताकि जल्द से जल्द वहाँ से बच सकें।

शिवाजी महाराज के आदर्श

धार्मिक नीति

सामाजिक नीति

शिवाजी महाराज की महिलाओं पर विचार

बीजापुर के मुल्ला ने अपनी सुंदर पुत्रवधू शिवाजी को भेंट की जब उसके पति का देहांत हो गया था। लेकिन उन्होंने उस महिला को वापस भेजा। युद्ध जीतने के बाद शिवाजी के सैनिक एक स्त्री को उठा लाए थे। शिवाजी ने पूछा कि आप ये क्या लाए हैं? सैनिको ने कहा कि यह एक सुंदर उपहार है।  तो शिवाजी ने ऐसा क्या उपहार था पता लगाने की कोशिश की। वे पेटी को खुलवाने के लिए कहा। जब पेटी खोली गई, तो देखा गया कि इसमें एक स्त्री है। शिवाजी क्रोधित हो गये। उनकी आंखें नम हो गईं। हे माता! मेरे सैनिको ने गलती की, उन्होंने उस महिला के पैर पड़कर कहा। हमें क्षमा कीजिए। आप सुरक्षित घर पहुंचेंगे। तब शिवाजी ने अपने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि आज के बाद किसी ने भी किसी महिला का अपमान किया या उसे गलत नजरों से देखा तो उसका गला वहीं काट दिया जाएगा। शिवाजी क्रोधित हो गये। उनकी आंखें नम हो गईं।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने किए गए महत्वपूर्ण कार्य

 

अंतिम दिन

शिवाजी का अंतिम दिन चिंता में बीता। शिवाजी बहुत दुखी हुए कि उनका छोटा पुत्र संभाजी अज्ञानतावश मुगलों के साथ जा रहा था। साथ ही उनकी पत्नी सोयराबाई ने अपने पुत्र राजाराम को अपनी जगह देने का प्लान बनाया था।  संभाजी योग्य व्यक्ति थे, शिवाजी की तरह विरोचित्त और गुणी थे, इसलिए वे चाहते थे कि वह उत्तराधिकारी बने और मराठा साम्राज्य को संभाले।

 

शिवाजी महाराज की मृत्यु

शिवाजी बहुत छोटी उम्र में देश छोड़कर चले गए, राज्य की चिंता के कारण उनकी तबियत खराब होने लगी और लगातार तीन हफ्तों तक बुखार में रहे, जिससे 3 अप्रैल 1680 में उनका देहांत हो गया। उनकी मौत सिर्फ पच्चीस वर्ष की उम्र में हुई। जब वे मर गए, उनके वफादारों ने उनके साम्राज्य को बचाया, और मुगलों ने अंग्रेजों से लड़ाई जारी रखी।

शिवाजी बहुत बड़े हिंदू रक्षाकर्ता थे। शिवाजी ने एक कूटनीति बनाई, जिसके अनुसार किसी भी साम्राज्य को बिना पूर्व सूचना के अचानक आक्रमण किया जा सकता था, और साम्राज्य के शासक को गद्दी छोड़नी पड़ी। इस नीति का नाम गनिमी कावा था। इसके लिए शिव को हमेशा श्रद्धांजलि दी जाती है। शिवाजी ने हिंदू धर्म को बदल दिया, अगर वे नहीं होते तो आज हमारा देश हिंदू नहीं होता। मुग़ल पूरी तरह से हम पर शासन करता था। यही कारण है कि मराठे शिवाजी को भगवान मानते हैं।

FAQs

  1. शिवाजी महाराज की कुल कितनी पत्नियां थीं?

शिवाजी की आठ पत्नियां थीं: सईबाई, सोयराबाई, पुतलाबाई, सक्वरबाई, काशीबाई जाधव, सगुणाबाई, लक्ष्मीबाई और गुणवतीबाई।

  1. छत्रपति शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व क्या था?

साथ ही: मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले महान साहसी और नवीन शासकों में से एक।

  1. छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती कब मनाई जाती है?

19 फरवरी को

  1. छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म तिथि क्या है?

19 फरवरी, 1630 में हुआ था

  1. छत्रपति शिवाजी महाराज का अंतिम संस्कार कब हुआ?

3 अप्रैल, 1680

  1. शिवाजी महाराज के कितने बेटे थे?

दो पुत्र हैं संभाजी और राजाराम पहला।

  1. छत्रपति शिवाजी को कुल कितनी बेटियां थीं?

शिवाजी महाराज ने छह पुत्रों को जन्म दिया था। जिनके नाम राजकुंवरी बाई, सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई और कमलाबाई थे।

 

  1. शिवाजी महाराज का जन्म स्थान बताओ।

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को पुणे (अब पुना, महाराष्ट्र) में शिवनेर के पहाड़ी किले में हुआ था।

निष्कर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास एक महान योद्धा, राजनीतिज्ञ और राष्ट्रपति की कहानी है जो मराठा साम्राज्य को बनाया और उसे एक बड़ी शक्ति बनाया। उनकी महानता और योगदान भारतीय इतिहास में अनमोल हैं।